Quantcast
Channel: डायरी
Browsing latest articles
Browse All 139 View Live

Image may be NSFW.
Clik here to view.

बाज़ार और स्वदेशी

Gadgets के बारे में पढ़ना और जानकारी इकट्ठा करना मुझे बेहद पसंद है। इसके पीछे शायद कारण यह है कि मुझे Gadgets सबसे क्रांतिकारी वैज्ञानिक अविष्कारों में से एक लगता है - ख़ासकर मोबाइल फोन। इस छोटी सी चीज़...

View Article


Image may be NSFW.
Clik here to view.

हूल विद्रोह : भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम !

अमूमन इतिहासकार 1857 के सिपाही विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई मानते हैं लेकिन तथ्यों की पड़ताल करने पर कई अन्य विद्रोह भी सामने आते हैं जो सिपाही विद्रोह से पहले के हैं और इन...

View Article


Image may be NSFW.
Clik here to view.

चार्ली चैप्लिन : हास्य एक गंभीर विषय है।

टीवी से अमूमन दूर ही रहता हूँ लेकिन कभी-कभी तफ़रीह मार लेता हूँ। आज तफ़रीह के चक्कर में #Romedy_Now नामक चैनल पर गया तो देखा चार्ली चैप्लिन की फ़िल्म#The_Circus आ रही है। अब चार्ली की कोई फ़िल्म आ रही हो...

View Article

चार्ली चैप्लिन : अमृत और विष !!!

90 का दशक था। एंटीना और स्वेत-श्याम टेलीविजन वाला युग। चैनल के नाम पर एकलौता दूरदर्शन था। केबल और डीटीएच टीवी का आतंक अभी कोसों दूर था। दुरदर्शन पर रविवार की सुबह चार्ली चैप्लिन की फिल्में दिखाई जा...

View Article

चार्ली चैपलिन : #The_Gold_Rush : प्यार काफी है हर काम को करने के लिए ।

सोने की खोज में बर्फीले तूफ़ान में फंसे भूख से बिलबिलाते दो लोग। कोई चारा ना देखकर अन्तः जूता पकाया जाता है और उस पके जूते को खाया भी जाता है। विश्व सिनेमा में यह दृश्य अद्भुत और अनमोल है और इस दृश्य को...

View Article


ये मोह मोह के धागे : दम लगाके हैशा

कुछ फिल्में बड़ी ही स्मूथ, स्वीट, सादगीपूर्ण और सौम्य होती हैं। ये फिल्में भले ही बॉक्स ऑफिस पर कोई बड़ा धमाल नहीं करतीं लेकिन जो भी इन्हें देखता है काफी दिनों तक इसके सादगीपूर्ण सम्मोहन से उबर नहीं पता।...

View Article

चार्ली चैप्लिन : The Kid के बहाने

सिनेमा की शुरुआत में ही फ़्रान्सीसी दर्शनिक बर्गसन ने कहा था कि "मनुष्य की मष्तिष्क की तरह ही कैमरा काम करता है। मनुष्य की आंखे इस कैमरे की लेंस हैं। आंखों से लिए गए चित्र याद के कक्ष में एकत्रित होते...

View Article

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876 अर्थात एक काला अध्याय अब समाप्त होगा।

सबसे पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि नाटय प्रदर्शन अधिनियम 1876 क्या है? इस का निर्माण क्यों किया गया? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी लोकतांत्रिक देश की मूलभूत ज़रूरतों में से एक है और जहां तक सवाल कला...

View Article


रिबन : एक अनछुआ प्रयास

हिंदी सिनेमा की मूल समस्या कथ्य की है। यहां अमूमन वही घिसा पीटा फॉर्मूला थोड़े फेर बदल के साथ चलता/बनता है और अमूमन फिल्में उसके आस पास गोल-गोल चक्कर काटती रहती हैं; जबकि भारत में इतने किस्से कहानियां...

View Article


फ़िल्म इत्तेफ़ाक : हर इत्तेफ़ाक़ महज इत्तेफाक नहीं होती !

यह सच है कि कलाकार एक दूसरे की कला से प्रभावित होते हैं, यह एक स्वाभविक प्रक्रिया है; लेकिन प्रभाव के साथ ही साथ चुपके से नकल कर लेना हिंदी सिनेमा की महत्वपूर्ण आदत रही है। यह सब आज से नहीं बल्कि बहुत...

View Article

एक दूजे के लिए : दुनियां में प्यार की एक है बोली

फिल्में ट्रेंड पैदा करती हैं। किसी ज़माने में नाटक भी ट्रेंड पैदा किया करते थे। जगह-जगह अर्थात ऐतिहासिक इमारत, पहाड़, पेड़ आदि पर प्रेमी-प्रेमिका का नाम लिखा होने का ट्रेंड शायद जिस फ़िल्म ने पैदा किया वो...

View Article

पद्मावती : नकली आहत भावनाएं

जो समाज जितना ज़्यादा डरा, सहमा, सामंती, नकली और कूढ़-मगज होता है; उसकी भावनाएं उतनी ज़्यादा आहत होती है। ज्ञानी आदमी कौआ और कान वाली घटना में पहले अपना कान छूता है ना कि कौए के पीछे दौड़ पड़ता है ।फ़िल्म...

View Article

अघोरी : जो घोर नहीं बल्कि सरल हैं।

भारत एक बहुलतावादी संस्कृति का देश है। यहां पग-पग पर पानी और वाणी बदल जाता है। कोई अगर किसी एक संस्कृति को ही भारतीय संस्कृति मानता है तो यह उसकी मूढ़ता है या फिर वो बाकियों में मूढ़ता का प्रचार करके...

View Article


हिंदी रंगमंच की मूल समस्या !!!

हिंदी रंगमंच की मूल समस्या उसका गैरपेशेवर चरित्र है। दूसरे किसी भी पेशा को लीजिए, उस पेशे को अपना व्यवसाय बनानेवाला व्यक्ति ज़्यादा से ज़्यादा वक्त उस पेशे में देता है और उस पेशे को व उस पेशे के लिए ख़ुद...

View Article

हिंदी रंगमंच की मूल समस्या - भाग दो

उदारीकरण के बाद विभिन्न सरकारी या गैरसरकारी अनुदानों के तहत कुछ पैसों का आगमन रंगमंच में हुआ है। यह पैसे क्यों बांटे जा रहे हैं, यह एक राजनैतिक खेल है जो इतनी आसानी से समझ में नहीं आनेवाला। एक पुरानी...

View Article


भावनाएं : कलाकार, कला और समाज की भावना

एक फ़िल्म के लिए लोग मरने-मारने पर उतारू हैं। कानून व्यवस्था और संविधान को ताक पर रखकर भावना के नाम पर गुंडई कर रहे हैं। इन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों को तालिबानी मूल्य में बदलते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती...

View Article

बनारस का महाश्मशान

जन्म और मृत्यु इस जगत के अकाट्य सत्य हैं जो एक न एक दिन सबके साथ घटित होता है। अमीर-गरीब, छोटा- बड़ा, लंबा-नाटा, सुंदर-कुरूप, प्रसिद्ध-गुमनाम यहां सब एक समान हैं। आदमी ख़ाली हाथ आता है और ख़ाली हाथ ही...

View Article


बहुत संकीर्ण है Toilet एक प्रेम कथा

कल Toilet एक प्रेम कथा नामक प्रोपेगेंडा फ़िल्म देखी। फ़िल्म देखने के पीछे का मूल कारण यह था कि ऐसी ख़बर थी कि फ़िल्म हमारे मित्र Bulloo Kumar अभिनीति फ़िल्म गुंटर गुटरगूँ की कॉपी है लेकिन इस बात में कोई खास...

View Article

नाटक बिदेसिया का एक किस्सा

1980 का दशक था। उस वक्त भिखारी ठाकुर लिखित और संजय उपाध्याय निर्देशित बिदेसिया नाटक तीन घंटे से ऊपर का हुआ करता था। 25 मिनट का तो पूर्व रंग हुआ करता था अर्थात् बिदेसी, बटोही, प्यारी सुंदरी और रखेलिन की...

View Article

फ़िल्म 102 Not Out : जिओ ज़िंदादिली से भरपूर ज़िन्दगी !

किसी भी इंसान के जीवन का मूल लक्ष्य क्या है? इस प्रश्न का सीधा जवाब है ख़ुशी की तलाश। इंसान जो कुछ भी करता है या करना चाहता है या नहीं भी करता है, उसके पीछे का कारण ख़ुशी नहीं तो और क्या है? दुःख का कारण...

View Article

माँ कहते ही कितना कुछ एक साथ याद आने लगता है।

किसी भी मनुष्य के अनुभूतियों और ज्ञान के चक्षु जब खुलने लगते हैं तो माँ कहते ही स्मृतियों में एक साथ ना जाने कितने बिम्ब बनने लगते हैं। कभी गोर्की की माँ याद आती है, कभी हज़ार चौरासी की माँ, कभी मदर...

View Article


दरअसल कानून की भाषा बोलता हुआ यहां अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।

मध्यप्रदेश का एक किसान 45 डिग्री सेल्सियस में 4 दिन से मंडी में अपनी फसल की तुलाई होने का इंतज़ार लाइन में लगकर करता है और अन्तः उसकी मौत हो जाती है। अब मरने से पहले मूलचंद नामक इस किसान ने "हे राम"या...

View Article


कामयाबी इंतज़ार करवाती है, उसके लिए जल्दी मत मचाइए।

आलस से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा ही महंगा पड़ता है। अमूमन सब सफल होना चाहते हैं, किसी भी स्थिति में कोई भी इंसान असफल तो नहीं ही होना चाहता है। तो क्या सफल होने का कोई गणित है? इसका जवाब है हाँ।...

View Article

अक्टूबर : रातरानी की हल्की और भीनीभीनी महक जैसी फ़िल्म

विश्विख्यात फ़िल्मकार Federico Fellini कहते हैं - "I don’t like the idea of “understanding” a film. I don’t believe that rational understanding is an essential element in the reception of any work of...

View Article

दमा दम मस्त कलंदर

आज सुबह-सुबह वडाली ब्रदर्स का गाया हुआ दमा दम मस्त कलंदर सुन रहा था. गाने के दौरान उन्होंने फ़कीर मस्त कलंदर से जुड़ा एक अद्भुत किस्से का ब्यान किया है. एक बार की बात है – मस्त कलंदर एक बेरी के पेड़ के...

View Article

Browsing latest articles
Browse All 139 View Live


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>